
1950 के पूर्व यह माना जाता था की सिन्धु सभ्यता का
विकास पृथक रूप से अचानक हुआ था लेकिन अब इस मान्यता को अस्वीकार कर दिया गया है I अनेको स्थानों से हड़प्पा से
पूर्व की सभ्यता प्राप्त हुई है I विद्वानों ने इसे पूर्व-हड़प्पा सभ्यता का नाम
दिया था लेकिन अब यह माना जाता है की यह हड़प्पा सभ्यता का प्रारंभिक युग था I इस आधार पर हड़प्पा सभ्यता का
विकास दो चरणों में हुआ -- पहले चरण में प्रारंभिक हड़प्पा सभ्यता या पूर्व-हड़प्पा
सभ्यता थी और दुसरे चरण में विकसित हड़प्पा सभ्यता थी जो नगर तथा व्यापार-प्रधान
सभ्यता थी I
पूर्व-हड़प्पा संस्कृति
1921
में
सिन्धु सभ्यता का ज्ञान हुआ था I इस खोज से भारतीय सभ्यता के विकास को इतिहास
में 5000
वर्ष
प्राचीन होने की मान्यता हुई I इसके बाद सिन्धु घाटी के अनेक क्षेत्रो में
उत्खनन होने से ज्ञात हुआ कि सिन्धु सभ्यता अत्यंत विस्तृत थी और यह सिन्धु नदी की
घाटी के बहार तक फैली थी, अतः इसे हड़प्पा संस्कृति कहा
गया क्योंकी हड़प्पा में सबसे पहले उत्खनन हुआ था और पुरातत्व की परंपरा के अनुसार
इसे हड़प्पा संस्कृति कहना उचित था I
पूर्व-हड़प्पा
संस्कृति :

स्थल
:- पूर्व-हड़प्पा संस्कृति के
अवशेष मुख्या रूप से तीन स्थानों पर पाए गए हैं 1. अमरी 2.कोटदिजी 3. कालीबंगा I अमरी सिन्धु नदी के तट पर मोहनजोदड़ो से लगभग 100 मिल दक्षिण में तथा करांची
से 300
मिल
उत्तर में है I
1959 - 62 के
वर्षों में पुरातत्ववेता केसल ने इस स्थान पर उत्खनन का कार्य किया था I इस स्थान पर पूर्व-हड़प्पा, हड़प्पा और परिस्कृत हड़प्पा
के अवशेष पाए गए है I कोटदिजी पश्चिमी पंजाब के
खैरपुर जिले में है I यह स्थान राष्ट्रीय मार्ग पर खैरपुर से 15 मिल दक्षिण में है
I पेशावर विश्वविद्यालय के पुरातत्व शाश्त्री डॉक्टर खान ने इस स्थान पर उत्खनन
कार्य 1965 में पूरा किया था I कालीबंगा राजस्थान में गंगानगर जिले में है I यहाँ
उत्खनन कार्य 1961 में पूरा हुआ था I यहाँ भी परिस्कृत हड़प्पा संस्कृति के निचे
पूर्व-हड़प्पा संस्कृति के अवशेष पाए गए हैं I
नगर योजना :- अमरी की तीसरी सतह में मकान प्राप्त हुए है I
वे आयताकार तथा भिन्न आकारों के है I इनका निर्माण मिटटी की दीवाल में लकड़ी के
खम्भों को लगाकर किया गया है I कुछ छोटे मकान भी पाए गए है जो संभवतः कोठरी आदि के
रूप में प्रयुक्त किये जाते होंगे I एक विशाल भवन पाया गया है जिसमे कई विभाजक
दीवालें है I संभवतः यह गोदाम था I
कोटदिजी में एक दुर्ग और
उसके पास बस्ती पाई गई है I इसकी विशेषता यह है की इस बस्ती को परकोटे से घेरा गया
है जो अनगढ़ पत्थरों से बना है I यह दीवाल लगभग 14 फूट ऊँची और 108 फूट लम्बी है I
दीवाल के उपरी भाग में कची ईंटो का प्रयोग किया गया है I डॉक्टर खान का मत है कि
इसी अनुकरण पर मोहनजोदड़ो और हड़प्पा में परकोटे बनाये गए थे I संभव है हड़प्पा संस्कृति
के लोगो ने ईंटो तथा भवन-निर्माण पूर्व-हड़प्पा के लोगो से सिखा हो I डॉक्टर
संकालिया का विचार है कि कोटदिजी संस्कृति नगर सभ्यता थी क्योकि परकोट, मकान,
नालियों के साथ यहाँ बड़े सामूहिक चूल्हे भी पाए गए है जिसके आधार पर इसे पूर्व-सिन्धु सभ्यता का नगर कहना
अधिक उपयुक्त होगा I
कालीबंगा की नगर योजना अधिक
विकसित है I यहाँ सभी मकान कंची इंटों के बनाये गए है I ईंटो का आकर 30X20X10 से.मी.
है I इन इंटों का प्रयोग आडे-तिरछे रूप में किया गया है जिस प्रकार आज कल दिवालो
का निर्माण होता है I यहाँ सीधी रेखा में नालियां है I मकान भी सीधी पंक्तियों में
हैं I मकानों की दो पंक्तियों के मध्य में मार्ग बनाये गए है I इन मार्गों को इस
प्रकार बनाया गया है कि प्रत्येक माकान तीन ओर से खुला है I कोटदिजी के सामान यहाँ
भी तंदूरी चूल्हे पाए गए है I यहाँ नही अनगढ़ पत्थरों का परकोटा पाया गया है I
डॉक्टर संकालिया का अनुमान है कि कालीबंगा तथा कोटदिजी में जो तंदूरी प्रकार के
चूल्हे पाए गए है, वे संभवतः पश्चिम एशिया के प्रभाव के कारन हो सकते है I कालीबंगा
में भी परकोटे की दीवाल पाई गई है I इसकी नीव भी अनगढ़ पत्थरों द्वारा बनाई गई है और
अपनी दीवाल में उसी प्रकार की कंची ईंटो का प्रयोग किया गया है जैसी यहाँ के मकान
में प्रयुक्त की गई है I इससे भी यही प्रमाणित होता है कि मोहनजोदड़ो या हड़प्पा में
जो दुर्ग या परकोटे पाए गए है, वे वहां के निवासियों के मौलिक निर्माण कार्य नहीं
थे बल्कि यह उन्होंने पूर्व-हड़प्पा संस्कृति से इसे सिखा था I
मृद-भांड (पाटरी) – अमरी में जो मृद-भांड पे गए है, वे हाँथ तथा
चाक दोनों प्रकार से बनाये गए है I इन पर ज्यमितिय अलंकरण है I एक पात्र पर
स्वस्तिक चिन्ह है जिसे सूर्य का प्रतिक माना जाता है I
कोटदिजी
के मृद-भांड प्रायः चाक निर्मित है I इनका निर्माण कलात्मक है और इनके अलंकरण में
लाल,पीले और काले रंगों का प्रयोग किया गया है I अलंकरण ज्यामितिय और सरल है I
डॉक्टर संकालिया लिखते है, “ हड़प्पा की पाटरी चमकदार या गहरे लाल रंग की है तथा
मजबूत है और उसे इतनी अच्छी तरह से पकाया गया है कि इसका कोई भी सिरा पिला या काला
नहीं है जो अपूर्ण पकाने के लक्षण है लेकिन पूर्व-हड़प्पा पाटरी में एसा नहीं है I यह
गुलाबी रंग की है और तुलनात्मक रूप से पतली है और इसे अच्छी तरह से पकाया भी नहीं
गया है I” हड़प्पा संस्कृति के पत्रों में अलंकरण अधिक कलात्मक तथा आकर्षक है I कालीबंगा
से प्राप्त अधिकांस मृदभांड चाक द्वारा निर्मित है I इनके अलंकरण में पहलीबार एक
पशु (हिरन) की आकृति पाई गई है I इनमे प्रायः सफ़ेद और काले रंगों का प्रयोग किया
गया है I
रहन-सहन :- कोटदिजी में अनेक वस्तुए पाई गई है जो प्रायः
पाषाण की बनी हुई है I इनमे धारदार पत्थर के छोटे हथियार है I इन्हें मिश्रित
हथियारों का भी ज्ञान था क्योंकि वाणों में लगाने के लिए छोटे पत्ती के आकर के
धारदार शीर्ष प्राप्त हुए हैं I
आंटा पिसने के लिए पत्थर के पाटों
का प्रयोग किया जाता था I कालीबंगा में पाषाण के धारदार हथियारों के अतिरिक्त पकी
हुई मिटटी, ताम्बे और शिप के मनके पाए गए है I ताम्बे की अनेक वस्तुए पाई गई है
लेकिन उनका उपयोग ज्ञात नहीं है I कालीबंगा में ही प्राप्त सर्वाधिक पकी मिट्टी का
बना गाड़ी का पहिया प्राप्त हुआ है I
इससे ज्ञात होता है की वे गाड़ी का
प्रयोग जानते थे I
आभूषण : - अमरी में आभूषणों के अवशेष प्राप्त नहीं हुए
है लेकिन कोटदिजी में कुछ आभूषण प्राप्त हुए है I इनमे सादी और रंगी हुई पकी मिटटी
की चूड़ियाँ है और मनके है I कुछ मनके शिप के भी प्राप्त हुए है I कालीबंगा में पकी
मिट्टी की चूड़ियों के साथ शिप और ताम्बे की चूड़ियाँ भी प्राप्त हुए है I यह
निश्चित है कि उन लोगो को ताम्बे का ज्ञान था लेकिन उन्हें बहुमूल्य पत्थरों के
आभूषणों को बनाने का ज्ञान था I

कोटदिजी
की कला अधिक विकसित है I एक पात्र पर मधुमखियों के छत्ते के समान अलंकरण बनाया गया
है I एक अन्य पत्र पर पशु के दो सींगो के मध्य दो फूलों को अंकित किया गया है I
रंग और रेखाए अधिक स्पष्ट है I कला योजनाओ में सौंदर्य और सादगी है I
कालीबंगा
की कला कोटदिजी से अधिक परिस्कृत है I अलंकरण में पशु आकृतियों का मुक्त रूप से
प्रोग किया गया है I अलंकरण में काल्पनिक तथा वास्तविक पुष्पों को भी अंकित किया
गया है I हिरन के लम्बे तथा लहरदार सिंग अत्यंत आकर्षक है I
मूर्ति
कला की कृति कोटदिजी में पाई गई है I यह पकी हुई मिट्टी की बनी बैल की आकृति है I
यह मूर्ति सिंग, नेत्रों आदि की दृष्टि से अत्यंत प्रभावशाली है I यद्यपि यह
मोहनजोदड़ो की पशु आकृति से निम्न स्तर की है, फिर भी यह स्पष्ट है कि पूर्व-हड़प्पा
की मूर्ति कला का विकास हड़प्पा में क्रमिक रूप में हुआ I
आर्थिक जीवन :- पूर्व- हड़प्पा संस्कृति के आर्थिक पक्ष पर
सिमित सामग्री प्राप्त हुई है I इतना निश्चित है कि पूर्व-हड़प्पा संस्कृति के लोग
चाक का प्रयोग जानते थे I उन्हें ताम्बे का भी ज्ञान था और औजारों और अभुशानो में
इसका प्रयोग होता था I वे ईंटो का निर्माण करना जानते थे और मकान बनाने की कला भी उन्हें
ज्ञात थी I मकान की छतें फूस की बनायीं जाती थी I वे आभूषण बनाना जानते थे जो संभवतः
पृथक व्यवसाय के रूप में विकसित हो रहा था I यह ग्राम संस्कृति थी जो नगर संस्कृति
के रूप में विकशित हो रही थी I हथियारों के प्राप्त होने से ज्ञात होता है कि उनका
युद्ध और आखेट में प्रयोग किया जाता था I सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है की
पूर्व-हड़प्पा के लोग कृषि करना जानते थे I कालीबंगा में एक खेत पाया गया है जिसमे जोती
हुई पंक्तियाँ है I यह जुताई दोहरी है अर्थात पूर्व-पश्चिम और उत्तर-दक्षिण में
जुताई की गई है I संभवतः एक साथ दो प्रकार के अनाज पाए जाते थे I एसा प्रतीत होता है
एक अनाज (जौ) था, दूसरा ज्ञात नहीं है I कोटदिजी में अनाज के दाने और पशुओं की
हड्डीयां प्राप्त हुई है जिससे ज्ञात होता है कि इन लोगों का मिश्रित साकाहारी और
मांसाहारी भोजन था I
तिथि :- पुरातत्वशास्त्री केसेल का
मत है कि अमरी संस्कृति की तिथि 2500 ईसा पूर्व होना चाहिए I उनका यह मत अन्य
स्थानों की मृत्तिका पात्रों के तुलनात्मक अध्ययन पर आधारित है I डॉक्टर संकालिया
का मत है कि इसकी प्रारंभिक बस्ती 2760 ईसा पूर्व या 2900 ईसा पूर्व हो सकती है I
कोटदिजी संस्कृति की तिथि 2500-2000 ईसा पूर्व मणि गई है I संभवतः यह नगर 1900 ईसा
पूर्व आग द्वारा नष्ट हो गया था I पुरातत्वा-शास्त्रियों का मत है कि यह कार्य
आक्रमणकारी हड़प्पा संस्कृति के लोगो द्वारा किया गया था I कालीबंगा संस्कृति
कोटदिजी के बाद की है I अतः पुरातत्वा के आधार पर इन तीन स्थानों का क्रम इस
प्रकार निश्चित किया गे है—अमरी,कोटदिजी,कालीबंगा
निशांत कुमार – ग्राम + पोस्ट +
थाना – बाबूबरही, जिला मधुबनी बिहार 8877824089
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